भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो गगनयान अभियान व पुनः प्रयोज्य रॉकेट सूर्या की तकनीक के सहारे अपने पर्यटकों को अंतरिक्ष में सैर कराने की योजना बना रहा है
हम सबने देश-विदेश के विभिन्न धार्मिक,ऐतिहासिक व प्राकृतिक नजारों का लुफ्त उठाते हुए कई लोगों को देखा है,अथवा सुना है और कई बार तो हम स्वयं भी इस तरह के स्थानों की यात्रा करने में पीछे नहीं रहते है और वहाँ जाकर स्थान विशेष के सौंदर्य को अपनी नेत्रों में क़ैद करते हुए,परम सुख की अनुभूति करते हैं।परंतु बात यदि धरती से दूर अंतरिक्ष में पर्यटन की हो,तो हम थोड़ा आश्चर्य के साथ विचार करते हैं,कि क्या ऐसा भी संभव है? और अगले ही क्षण कई प्रश्न हमारे मन-मस्तिष्क में एक साथ कौंदने लग जाते हैं,कि वहाँ तक कैसे जाएंगे? वापसी कैसी होगी? और अनायास ही यात्रा के रोमांचक सफ़र और उनके संभावित खतरों पर भी विचार चला ही जाता है।तो आज हम इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर ढूंढेंगे और जानेंगे कि क्या है अंतरिक्ष पर्यटन? और वहाँ तक कैसे जाया जाता है?
अंतरिक्ष पर्यटन :- पर्यटन के उद्देश्य से मानव द्वारा अंतरिक्ष की यात्रा ही अंतरिक्ष पर्यटन है।जैसा कि नाम से ही अर्थ स्पष्ट है,कि पर्यटकों को किसी रॉकेट की सहायता से अंतरिक्ष में भेजकर,अंतरिक्ष के शून्य गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करवाते हुए वहाँ से पृथ्वी तथा अंतरिक्ष के दृश्यों को दिखाना ही अंतरिक्ष पर्यटन कहलाता है।
भले ही अंतरिक्ष पर्यटन की अवधारणा हमारे लिए नयी है,परंतु इसकी शुरुआत सन् 2001 में ही हो गई थी,जब एक अमेरिकी व्यवसायी डेनिस टीटो एक रूसी स्पेसक्राफ्ट सोयूज TM-32 में बैठकर अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम पर्यटक बने थे।
अंतरिक्ष में पर्यटकों की उड़ान दो तरीक़ों से संभव है,पहला जिसमें कोई स्पेस क्राफ्ट, पर्यटकों को लेकर पृथ्वी की सतह से लगभग 400 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित निम्न भू कक्षा में जाता है,जहाँ वह कुछ दिनों तक उसी कक्षा में पृथ्वी के चक्कर लगाते हुए,पर्यटकों को अंतरिक्ष के बाहरी दृश्यों के साथ-साथ भारहीनता का अनुभव करवाकर, धरती पर वापस लौट आता है,इसे कक्षीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कहा जाता है।
कई बार इस तरह के अभियानों में पर्यटकों को “एक्स्ट्रा व्हिकलर एक्टिविटी”( EVA ) भी करवाई जाती है,जिसमें पर्यटक स्पेस सूट के सहारे अपने स्पेसक्राफ़्ट से बाहर आकर प्रत्यक्ष रूप से अंतरिक्ष को महसूस करते हैं।हाल ही में स्पेस X द्वारा संचालित एक्सीओम-4 मिशन भी कुछ इसी तरह का अभियान था।और कई बार स्पेसक्राफ्ट पर्यटकों को लेकर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भी जाता है।
ज्ञात है कि 2001 से 2009 तक स्पेस एडवेंचर कम्पनी के द्वारा पर्यटन के उद्देश्य से संचालित प्रारंभिक मिशन कुछ इसी तरीक़े से संपन्न किए गए,जिसमें पर्यटकों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर ले जाया गया।
वहीं अंतरिक्ष पर्यटन का एक अन्य तरीक़ा उप-कक्षीय मानव अंतरिक्ष उड़ान है,जिसमें कोई स्पेसक्राफ्ट, पर्यटकों को पृथ्वी की सतह से लगभग सौ किलोमीटर ऊपर (कर्मन लाइन ) अंतरिक्ष के प्रारंभिक बिंदु तक ले जाता है, जहाँ वे कुछ क्षणो के लिए भारहीनता का अनुभव करते हैं तथा बाद में वापस धरती की ओर लौट आते हैं।
यह उप-कक्षीय मानव अंतरिक्ष उड़ान, अंतरिक्ष पर्यटन का सर्वाधिक सामान्य रूप है ,जिसका उपयोग वर्तमान में कई अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा वाणिज्यिक उद्देश्य से किया जा रहा है, जिसमें जैफ बेजोस की ब्लू ओरिजिन व रिचर्ड ब्रैनसन के मालिकाना हक़ वाली वर्जिन गैलेक्टिक उल्लेखनीय हैं।
ग़ौरतलब है कि पर्यटन के लिहाज़ से उप-कक्षीय मानव अंतरिक्ष उड़ान एक नवीन अवधारणा है,जिसकी शुरुआत हाल ही के वर्षों में हुई है। 20 जुलाई 2021 को पर्यटकों के साथ पहली बार ब्लू ओरिजिन के द्वारा दस मिनट की एक रोमांचक उड़ान संपन्न हुई, जो इस दिशा में एक नवीन पहल थी।तत्पश्चात वर्ष 2023 में एक अन्य कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक ने भी अल्प अवधि वाली उप-कक्षीय उड़ान प्रारंभ करते हुए,पर्यटकों को अंतरिक्ष में भेजना प्रारंभ कर दिया।एक ऐसी ही उड़ान द्वारा मई 2024 में भारतीय मूल के पायलट थोटाकुरा गोपीचंद अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय पर्यटक बने।
2001 में शुरू होने के बावजूद ये उद्योग अभी भी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है,किन्तु अब यह उद्योग तेज़ी से बढ़ रहा है क्योंकि अंतरिक्ष यात्राओं की माँग लगातार बढ़ रही है और वर्ष 2023 से 2030 तक 40.2 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से इसके विस्तार की भी संभावना है।
इन्हीं संभावनाओं को देखते हुए अब भारत भी अंतरिक्ष पर्यटन पर तेज़ी से काम कर रहा है तथा इसरो की योजना है कि,इस दशक के अंत तक उप-कक्षीय अंतरिक्ष उड़ान द्वारा भारत भी अपने पर्यटकों को अंतरिक्ष में भेजेगा।
अंतरिक्ष पर्यटन हेतु आवश्यक प्रौद्योगिकी:-
अंतरिक्ष में पर्यटकों को भेजने के लिए कुछ मूलभूत तकनीकों की आवश्यकता होती है, इसमें रीयुजेबल रॉकेट तथा पर्यावरणीय सुविधाओं से युक्त क्रू कैप्सूल शामिल है। भारत इन दोनों ही तकनीकों को जल्द ही विकसित करने वाला है, क्योंकि भारत 2026 में गगनयान मिशन के अंतर्गत अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने जा रहा है और इसके लिए पर्यावरण नियंत्रण व जीवन समर्थन प्रणाली युक्त क्रू कैप्सूल निर्मित कर रहा है। कालांतर में कुछ इसी तरह के क्रू कैप्सूल का उपयोग स्पेस टुरिज़म में किया जाएगा।वहीं दूसरी ओर भारत रीयूजेबल लॉन्च यान NGLV यानी सूर्या निर्मित कर रहा है,जिसके प्रथम चरण को उपयोग के पश्चात लंबवत अवतरण करवाते हुए पुनः प्राप्त किया जाएगा।
ISRO पहली बार वर्टिकल लैंडिंग की इस क्रिटिकल तकनीक पर कार्य कर रहा है।सूर्या हेतु इस तकनीक को विकसित करने के लिए इसरो पहले किसी अन्य रॉकेट के साथ थ्रोटेंलिंग विकास इंजन लगाकर वर्टिकल लैंडिंग तकनीक का परीक्षण करेगा और जब ये तकनीक विकसित हो जाएगी,तब इसे NGLV में प्रयुक्त करने के अलावा अंतरिक्ष पर्यटन में भी काम में लिया जाएगा।
इन दोनों ही तकनीकों ( गगनयान के लिए क्रू कैप्सूल तथा पुनःप्रयोज्य रॉकेट) के विकसित हो जाने पर इसरो की योजना है , कि पुनः प्रयोज्य प्रक्षेपण यान के ऊपर क्रू कैप्सुल लगाकर न्यूनतम 5 पर्यटकों के साथ उन्हें पृथ्वी की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में भेजा जाएगा,जहाँ पर उसमें सवार पर्यटक लगभग 200 सेकंड तक शून्य गुरुत्वाकर्षण के कारण भारहीनता का अनुभव करेंगे।तत्पश्चात वे सभी पर्यटक उसी क्रू कैप्सूल के साथ ही वायुमंडल में पुनः प्रवेश करते हुए निर्धारित स्थान पर पैराशूट की सहायता से धरती पर उतरेंगे।वहीं कैप्सूल को अंतरिक्ष में ले जाने वाला रॉकेट भी इससे अलग होकर पृथ्वी पर लंबवत अवतरण करेगा।ताकि उनका पुनः प्रयोग किया जा सके।भले ही ये अभियान मुश्किल से 10 से 15 मिनट का होगा,परंतु यह उस पर्यटक के लिए उनके जीवन के सबसे रोमांचकारी क्षण होंगे।
लेखक-माँगी लाल विश्नोई