भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो करोड़ों भारतीयों के सपनों को साकार करने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और अब वह समय दूर नहीं है ,जब भारत इसरो के नेतृत्व में अंतरिक्ष क्षेत्र में महाशक्ति बन कर उभरेगा।क्योंकि जल्द ही भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल होने जा रहा है जिनके पास न केवल स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन है अपितु इंसानो को चाँद तक ले जाने वाला शक्तिशाली रॉकेट भी है।
चंद्रयान-3 की सफलता से उत्साहित भारतीय अंतरिक्ष आयोग ने हाल ही में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में “विकसित भारत”-2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्पेस विजन 2047 के अंतर्गत इसरो की आगामी परियोजनाओं को मंज़ूरी प्रदान की है, जिसमें चंद्रयान-4, शुक्रयान,आगामी पीढ़ी का शक्तिशाली प्रक्षेपण वाहन सूर्या तथा इसे लॉन्च करने हेतु श्रीहरिकोटा में तीसरा लॉन्च पैड सहित गगन यान के पश्चातवर्ती अभियान जिसमें भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के प्रथम मॉड्यूल की स्थापना आदि भी सम्मिलित है।इन सभी परियोजनाओं को समयबद्ध रूप से पूर्ण करने के लिए केन्द्र सरकार के द्वारा बजट भी जारी कर दिया गया है।इसके साथ ही भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2023 में घोषित अंतरिक्ष नीति के अनुसार भारत 2035 तक स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करेगा तथा 2040 तक किसी भारतीय को चाँद की सतह पर उतारने का लक्ष्य रखा गया है।इन सभी अभियानों को समयबद्ध रूप से पूर्ण करने हेतु इसरो ने कमर कस ली है।
लेकिन आज भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में जिस मुक़ाम पर खड़ा है वहाँ तक पहुँचने के पीछे हमारे वैज्ञानिकों का कठिन परिश्रम, कार्य के प्रति उनका समर्पण व लंबा संघर्ष निहित है जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। बेशक़ हमारी शुरुआत देरी से हुई, लेकिन देश के आर्थिक हालात को ध्यान में रखते हुए हुई। एक तरफ़ जिस समय अमेरिका चाँद पर झंडा फहरा रहा था ठीक उसी समय इसरो का जन्म हो रहा था। अर्थात् भारत इस रेस में शुरुआत से ही पिछड़ गया था लेकिन सीमित संसाधनों के साथ जिस तरह से हमारे देश ने इस क्षेत्र में प्रगति की है, वह क़ाबिलेतारीफ़ व प्रत्येक भारतीय को गौरवान्वित करने वाली है।किसी समय इसरो का मज़ाक उड़ाने वाली स्पेस शक्तियाँ आज उसी इसरो के साथ टेबल साझा करने को आतुर है।आज दुनिया के शीर्ष देश, भारत के साथ साझेदारी में मिशन संचालित कर रहे है। ग़ौरतलब है कि इसरो, नासा की साझेदारी में निसार मिशन तथा जापान के साथ मिलकर Lupex मिशन करने जा रहा है।क्योंकि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने सीमित संसाधनों के साथ कम बजट में मंगल तक की यात्रा करके दुनिया भर में अपनी अलग पहचान स्थापित की है।शीत युद्ध के उस दौर में जब अमेरिका व सोवियत के बीच प्रतिष्ठा की एक अंधी स्पेस रेस चल रही थी,उस समय भी एक देश जो वसुधैव कुटुम्बकम को अपना आदर्श मानता है,जो प्राणिमात्र के प्रति कल्याण की भावना रखता है,विश्व का कल्याण जिनका मूल मंत्र है,दबे पाँवों से धीरे-धीरे लेकिन सुनियोजित तरीक़े से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अपने क़दम आगे बढ़ा रहा था।वह देश कोई और नहीं बल्कि हमारा भारतवर्ष ही था। जिन्होने अंतरिक्ष के क्षेत्र में किसी अन्य देश के साथ प्रतिस्पर्धा करने के बजाय,अपने देश के आर्थिक हालातों से लड़ते हुए सर्वप्रथम उन तकनीकों पर ध्यान दिया,जो देश के नागरिक सेवाओं से जुड़ी हुई थी।जिसमें संचार उपग्रहों के साथ-साथ सुदूर संवेदी सेवाओं की स्थापना शामिल थी।लेकिन जैसे ही देश के आर्थिक हालात सुधरने लगे,इसरो ने भी अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपना दायरा बढ़ाते हुए अंतरग्रहीय अभियानों के साथ साथ आधुनिक प्रमोचन प्रौद्योगिकी पर ध्यान देना प्रारंभ कर दिया,ताकि अपार संभावनाओं वाले इस क्षेत्र के सहारे देश का विकास तीव्र गति से किया जा सके।
वर्तमान समय में भारत अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 8 बिलियन डॉलर के साथ कुल 2% की हिस्सेदारी रखता है, जिसे बढ़ाकर 2033 तक 44 बिलियन डॉलर एवं 2047 तक 82 बिलियन डॉलर के साथ कुल पंद्रह प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।
इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में इसरो की आगामी परियोजनाओं की भागीदारी अति महत्वपूर्ण होने वाली है, क्योंकि इसमें निजी क्षेत्रों का अधिकाधिक सहयोग अपेक्षित है।
भारत 2035 तक स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने हेतु कृत संकल्पित हैं जो कि लंबे समय तक शून्य गुरुत्वाकर्षण में शोध करने हेतु आवास व प्रयोगशाला की सुविधा प्रदान करेगा।कुल पाँच मॉड्यूल से युक्त भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के प्रथम मॉड्यूल को 2028 में पृथ्वी से 400 किमी ऊपर निम्न भू कक्षा में स्थापित करने की योजना है।तत्पश्चात 2035 तक शेष भागों को भी एक एक करके इससे जोड़ा जाएगा।
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना उसी कक्षा में की जाएगी जिसमें अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन वर्तमान में चक्कर लगा रहा है,इसे भारत के लिए एक अवसर के रूप में देखा जा रहा है,क्योंकि 2030 तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के सेवानिवृत्त होने के पश्चात भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन वैश्विक समुदाय को वैकल्पिक सुविधा प्रदान करके,आर्थिक लाभ अर्जित कर सकेगा।कुल 52 टन भारी इस स्टेशन को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने हेतु भारत अगली पीढ़ी का शक्तिशाली प्रक्षेपण यान NGLV अथवा सूर्या विकसित कर रहा है।सूर्या नाम से प्रचलित नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल NGLV भारत की प्रमोचन प्रणाली को व्यापक स्तर पर बढ़ाएगा। क्योंकि यह वर्तमान में भारत की सबसे शक्तिशाली रॉकेट LVM-3 की तुलना में 3 गुना ज़्यादा भारी पेलोड को अंतरिक्ष में ले जा सकेगा। जबकि लागत में वृद्धि सिर्फ़ डेढ़ गुना होगी ।तीन चरणों से युक्त, हैवी लिफ़्ट लॉन्च व्हीकल सूर्या की प्रथम व द्वितीय चरण में जहाँ मिथेलॉक्स इंजन का उपयोग किया जाएगा ,वहीं इसका तीसरा व ऊपरी चरण क्रायोजेनिक इंजन से प्रणोदित होगा। मज़े की बात यह है कि, सूर्या की प्रथम बूस्टर स्टेज पेलोड को निर्दिष्ट कक्षा में प्रक्षेपित करने के पश्चात स्वचालित नौवहन व थ्राटलिंग इंजन की सहायता से पृथ्वी पर पुनः वर्टिकल लैंड करेगी, ताकि बूस्टर व इसमें लगे 9 मिथेलॉक्स इंजन का उपयोग दुबारा से किया जा सके। इस तकनीक से न केवल मिशन की लागत में कमी आएगी,अपितु फ़्रीक्वेंट मिशन भी संभव होंगे।कालान्तर में लंबवत अवतरण की इसी तकनीक के सहारे इसरो अंतरिक्ष पर्यटन की भी योजना बना रहा है।उल्लेखनीय है कि वर्तमान में अमरीकी एयरोस्पेस कंपनी स्पेसएक्स भी फ़ाल्कन-9 व फ़ाल्कन-सुपर हैवी रॉकेट को इसी तकनीक से पुनः प्राप्त करता है।
प्रारम्भ में इसरो सूर्या के दो संस्करण विकसित करेगा, जिन्हें क्रमशः NGLV तथा NGLV-H के नाम से जाना जाएगा, इसके लिए केंद्रीय कैबिनेट द्वारा 8 वर्ष की समय सीमा के साथ ISRO को 8239 करोड़ रूपये का बजट भी स्वीकृत कर दिया गया है। एक ओर जहाँ सूर्या का प्रथम संस्करण बीस टन पेलोड को निम्न-भू कक्षा में तथा नौ टन पेलोड को भू स्थैतिक परिवर्तन कक्षा ( GTO ) में ले जाने में सक्षम होगा, वही इसका द्वितीय संस्करण NGLV-H , जिसे NGLV के प्रथम संस्करण को ही सँवर्धित करके उनके कोर स्टेज के साथ दो ठोस बूस्टर लगाकर निर्मित किया जाएगा, क्रमशः 30 टन व 12 टन पेलोड को इन कक्षाओं में स्थापित कर पाएगा।
इन दोनों ही संस्करणों के विकसित हो जाने से भारत की प्रक्षेपण क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि होगी, जिसके सहारे ISRO जहाँ एक ओर भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना करके उन्हें सुचारु रखने में सफल हो पाएगा,वहीं दूसरी तरफ़ भारी नितभार युक्त संचार व अन्य वाणिज्यिक अभियान आसानी से संचालित कर सकेगा।
लेकिन यहाँ ग़ौर करने योग्य बात यह है कि , भारत NGLV के इन दोनो संस्करणों के भरोसे चाँद तक मानव को नही भेज सकेगा।इसके लिए ISRO को और अधिक शक्तिशाली रॉकेट NGLV सुपर हैवी को निर्मित करना होगा। इस हेतु ISRO की योजना है कि, NGLV-H को ही संवर्धित करके,इसके ठोस स्ट्रैपऑन बूस्टर को मिथेलाक्स ईंधन से प्रतिस्थापित करके, अधिक शक्तिशाली रॉकेट बनाएँगे।इससे भारत 2040 तक चंद्रमा की सतह पर मानव भेजने के साथ साथ अन्य अंतरग्रहीय मानव अभियान पर भी विचार कर सकेगा।भारत सरकार NGLV के विकास व उत्पादन में अधिक से अधिक निजी क्षेत्रों की भागीदारी पर बल दे रही है,ताकि इससे स्पेस इको सिस्टम को बूस्ट मिले।
यहाँ इसरो के एक और अभियान की चर्चा आवश्यक है,जो चंद्रमा की सतह से मिट्टी इत्यादि के सैंपल लेकर वापस धरती पर लौटेगा।चंद्रयान-4 नामक यह मिशन 2028 में संभावित हैं ,कुल पाँच मॉड्यूल वाले इस स्पेसक्राफ़्ट को दो LVM-3 रॉकेट के द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा ।इस मिशन में कई तकनीकों का परीक्षण किया जाएगा,जिसमें पृथ्वी की कक्षा में स्पेसक्राफ्ट की डॉकिंग से लेकर चन्द्रमा तक की यात्रा ,पुनः अनडॉकिंग व चन्द्रमा की सतह पर लैंडिंग सहित चंद्रमा की सतह से सैंपल लेकर वापस धरती तक की यात्रा सम्मिलित है।जो कि मानव को चाँद पर उतारकर उन्हें वापस सुरक्षित धरती तक लाने हेतु आवश्यक है।क्योंकि अभी तक हमारे पास चन्द्रयान-3 अभियान के द्वारा चंद्रमा तक जाने तथा उनकी सतह पर सुरक्षित उतरने की तो तकनीक विकसित हो चुकी है,परंतु वापसी का कोई अनुभव नही है इसलिए चन्द्रयान-4 मिशन, चंद्रमा पर मानव भेजने हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उल्लेखनीय है कि,भारत 2008 से लूनर एक्सप्लोरेशन मिशन संचालित कर रहा है।इसी श्रृंखला में ऐतिहासिक चंद्रयान-तीन के द्वारा 23 अगस्त 2023 को भारत ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग की थी।भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बना था।इसके अलावा भारत,जापान के साथ मिलकर LUPEX नामक चंद्रयान-5 मिशन की भी तैयारी कर रहा है,जो भविष्य में प्रस्तावित है।इस मिशन के लिए भारत जापान को चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए लैंडर मुहैया करवाएगा,जबकि रोवर व रॉकेट जापान का होगा
इसरो के इन सभी अभियानों के साथ एक मिशन, जो लंबे समय से चर्चा में चल रहा है, वो है गगन यान। जिसके अंतर्गत भारत वर्ष 2026 में अपने तीन अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी से 400 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित अंतरिक्ष की कक्षा में भेजने जा रहा है और फिर उन्हें सुरक्षित वापस धरती पर भी लाएगा।इस हेतु भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इस मिशन में मानव से जुड़े सभी सुरक्षा मानकों का परीक्षण कर रही है, जिसमें क्रू एस्केप सिस्टम सहित ह्यूमन रेटेड प्रक्षेपण यान LVM-3 इत्यादि सम्मिलित है।
साथ ही यात्रियों को अंतरिक्ष में पर्यावरणीय सुविधा देने हेतु स्वदेशी “पर्यावरण नियंत्रण व जीवन समर्थन प्रणाली” का भी निर्माण कर रहा है।हालाँकि इसमें अभी 3 परीक्षण उड़ानें होनी शेष है,जो मानव रहित होगी।तत्पश्चात लगभग 2026 में भारत एच-1 नामक उड़ान के द्वारा पहली बार अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेगा और भारत ऐसा करने वाला अमेरिका, रूस तथा चीन के पश्चात चौथा देश होगा।यह अभियान भारतीय अंतरिक्ष तकनीकी को नए आयाम तक पहुँचाएगा।
इनके अलावा एक तरफ़ जहाँ इसरो शुक्र ग्रह के वातावरण व सतह से जुड़े रहस्यों को उजागर करने के लिए 2028 में 1236 करोड़ की लागत से शुक्रयान नामक एक “वीनस ऑर्बिटर मिशन” भेजने जा रहा है, वहीं मंगल ग्रह के लिए भी एक लैंडर की योजना बना रहा है।साथ ही इसरो देश की प्रणोदन प्रणाली को भी समृद्ध बनाने में प्रयासरत है।इसके अंतर्गत वह सैमी-क्रायोजनिक व मिथेलॉक्स इंजन के साथ-साथ नाभिकीय प्रणोदन और एयर ब्रिदिंग प्रपल्शन तंत्र पर काम कर रहा है।उल्लेखनीय है कि,भारत अब तक तरल ईंधन आधारित विकास इंजन व ठोस इंजन के साथ-साथ ऊपरी चरण हेतु क्रायोजनिक इंजन भी विकसित कर चुका है ।इन सभी अभियानों का सार यह है कि,इसरो देश को स्पेस पॉवर बनाने की ओर तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है।
लेखक-माँगी लाल विश्नोई