शुक्रयान न केवल भारत के लिए अपितु , सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक जगत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मिशन है। और विशेष रूप से जब से वैज्ञानिको की एक टीम ने वर्ष 2020 में शुक्र के बादलों में फ़ास्फ़ीन गैस की मौजूदगी का पता लगाया है, तब से ही इस ग्रह ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है । क्योंकि फ़ास्फ़ीन की उपस्थिति इस ग्रह पर बायोसिग्नेचर की तरफ़ इशारा कर रही है।ऐसे में सभी वैज्ञानिको के लिए भी यह एक कौतूहल का विषय है, कि इस निर्जन, वीरान और ज़हरीले वातावरण युक्त अत्यंत गर्म ग्रह पर फ़ास्फ़ीन आया कहाँ से ? जो कि एक जाँच का विषय है।
-: शुक्रयान का महत्व :-
1) चन्द्रयान-4 के साथ-साथ “वीनस ऑर्बिटर मिशन” विकसित भारत-2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक है, क्योंकि ये मिशन भारत की स्पेस इकॉनमी को बूस्ट करेगा तथा अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ाने में मदद करेगा, जिससे नवीन रोज़गार सृजन होगा।
2) शुक्र के विषय में वैज्ञानिक समुदाय की समझ को बढ़ाएगा, ताकि यह समझने में सहायता मिलेगी कि इन ग्रहों की उत्पति कैसे हुई।
3) पृथ्वी से आकार व घनत्व में समरूपता रखने वाले इस ग्रह के अध्ययन से हमें इस ग्रह में भविष्य में होने वाले बदलावों के बारे में जानकारी मिल सकेगी, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि, अरबों वर्ष पहले पृथ्वी भी शुक्र के जैसी ही रही होगी।
4) इस अभियान से शुक्र ग्रह के वायुमंडल में खोजी गई फ़ास्फ़ीन की सत्यता प्रमाणित हो सकेगी, ताकि वहाँ जीवन की सम्भावना तलाशी जा सके।
5) भारत की अंतरिक्ष तकनीकी में वृद्धि होगी ,जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ISRO की साख बढ़ेगी।
( शुक्र ग्रह :- एक नज़र में )
...हमारे सौरमंडल में स्थित एक आंतरिक ग्रह है , जो सूर्य से दूरी के हिसाब से दूसरे तथा द्रव्यमान व आकार में छठा सबसे बड़ा ग्रह है।
... यह पृथ्वी का सबसे निकटतम ग्रह है, जिसकी न्यूनतम दूरी लगभग 4 करोड़ किमी. है । हालाँकि पृथ्वी व शुक्र दोनो ही सूर्य की परिक्रमा करने के कारण इनके बीच की दूरी घटती- बढ़ती रहती है। यह प्रत्येक 19 माह बाद पृथ्वी के साथ न्यूनतम दूरी पर होता है, जो कि शुक्र के लिए अभियान हेतु सबसे उचित समय होता है। किसी कारण वश भारत द्वारा 2028 में शुक्रयान लॉंच नही कर पाने की स्थिति में ,उन्हें अगली लाँच विंडो का इंतज़ार करना पड़ेगा जो 2031 में आएगी।
...सौरमंडल के अन्य ग्रहों के विपरीत शुक्र व युरेनस अपनी धुरी पर दक्षिणावर्त ( पूर्व से पश्चिम ) घूर्णन करते है। इसलिए यहाँ सूर्योदय पश्चिम दिशा में होता है। परंतु शुक्र की घूर्णन गति अत्यंत मंद होने के कारण इनका एक दिन पृथ्वी के 243 दिन के बराबर होता है।
...शुक्र का वायुमंडल अत्यंत घना व कार्बन- डाई -ऑक्साइड( हरित ग्रह गैस ) से निर्मित होने के कारण, यह सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह है, जिसका तापमान लगभग 463 डिग्री सेल्सियस है।ऐसे में कोई भी लैंडर शुक्र की सतह पर अधिक समय तक काम नही कर सकता।
... शुक्र ग्रह पर पृथ्वी की तुलना में 92% अधिक वायुमंडलीय दाब पाया जाता है।
... शुक्र के वातावरण में सल्फ्यूरिक अम्ल से निर्मित घने बादल पाए जाते हैं,जिससे इसकी सतह पर अम्लीय वर्षा की भी संभावना बनी रहती है।
इन सभी विशेषताओ के कारण शुक्रयान की भूमिका और भी अधिक बढ़ जाती है, अतः इन सभी रहस्यों से पर्दा उठाने में यह मिशन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
लेखक- माँगी लाल विश्नोई