अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रारंभिक दिनों में हमारे पास उपग्रहों को प्रक्षेपित करने हेतु रॉकेट नही थे,इसलिए हम प्रक्षेपण हेतु पूरी तरह से अन्य देशों के ऊपर निर्भर थे।लेकिन वर्तमान समय में हमारे पास न केवल पर्याप्त प्रमोचन प्रौद्योगिकी विकसित हो चुकी है, बल्कि भारत बहुत ही कम क़ीमत में उपग्रहों को प्रक्षेपित करने हेतु दुनिया भर में जाना जाता है। इसरो ने यह मुक़ाम कैसे हासिल किया? आइए जानते है।
प्रक्षेपण यान:- उपग्रह या अंतरिक्ष यानो को धरती से ऊपर की ओर लिफ़्ट करके निर्धारित कक्षाओं में प्रक्षेपित करने वाले वाहनों को प्रक्षेपण यान कहते हैं।ये रॉकेट इंजन पर आधारित होते हैं,इसलिए इसमें प्रणोदन के रूप में ईंधन व ऑक्सीजन दोनों की आवश्यकता होती है,जबकि वायुयानों में जेट इंजन प्रयुक्त होते हैं,जिसमें केवल ईंधन की आवश्यकता होती है और ऑक्सीजन बाहरी वायुमंडल से ली जाती है।
प्रक्षेपण यान न्यूटन के तीसरे नियम( क्रिया- प्रतिक्रिया) के आधार पर कार्य करते हैं, क्योंकि जब ईंधन के दहन से उत्पन्न थ्रस्ट नोजल से नीचे की तरफ़ तीव्र वेग से बाहर निकलती है,तब उसके प्रतिक्रियास्वरूप यान ऊपर की ओर गति करने लगता है।
रॉकेट इंजन में अधिकांशतः ठोस ईंधन, तरल ईंधन अथवा हाइब्रिड ईंधन प्रयुक्त होते हैं,परंतु वर्तमान समय में कई देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों के द्वारा प्रक्षेपण क्षमता को बढ़ाने तथा लंबी दूरी के मिशन को सफलतापूर्वक संचालित करने हेतु नाभिकीय प्रोपल्शन तथा इलेक्ट्रिक इंजनों पर भी कार्य चल रहा है।
प्रमोचन यान तीन अथवा चार चरणों से युक्त होते हैं जिसमें आवश्यकता के अनुसार अलग- अलग प्रकार के रॉकेट इंजन प्रयुक्त हो सकते हैं।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO अब तक ठोस ईंधन व तरल ईंधन आधारित रॉकेट इंजनों के साथ-साथ स्वदेशी क्रायोजनिक तकनीक को विकसित कर चुका है,और वर्तमान में सेमी- क्रायोजनिक तकनीक,नाभिकीय प्रणोदन तथा रेमजेट व स्क्रेमजेट इंजनों को विकसित कर रहा है,ताकि प्रमोचन तकनीक को उन्नत स्तर तक पहुंचाया जा सके।
ISRO के एयर ब्रीदिंग प्रोपल्शन तंत्र जिसमें रैमजेट व स्क्रेमजेट इंजन संयुक्त रूप से सम्मिलित है,के विकसित हो जाने पर न केवल वाहन के वज़न को कम किया जा सकेगा,बल्कि प्रमोचन यान की क्षमता को भी बढ़ावा मिलेगा।
ग़ौरतलब है कि रैमजेट व स्क्रेमजेट तकनीक में ईंधन के दहन हेतु आवश्यक ऑक्सीजन को एक जेट इंजन की तरह वायुमंडल से प्राप्त किया जाता है,जिसके कारण ऑक्सीजन को यान में साथ ले जाने की आवश्यकता नहीं होती है।
रॉकेट प्रौद्योगिकी में इस शिखर तक पहुँचने के लिए ISRO को लंबा संघर्ष करना पड़ा है,इसका प्रारम्भिक श्रेय विक्रम साराभाई व सतीश धवन को जाता है, तत्पश्चात इसे आगे बढ़ाने में वैज्ञानिक नंबी नारायणन एवं डॉक्टर अब्दुल कलाम का महत्वपूर्ण योगदान है।
भारत में प्रमोचन यान प्रौद्योगिकी की शुरुआत:- भारत ने 21 नवम्बर 1963 को केरल के “थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन” से देश के पहले साउंडिंग रॉकेट नाइक अपाचे का सफल प्रक्षेपण करके रॉकेट प्रौद्योगिकी में अपने क़दम आगे बढ़ाए।हालाँकि यह रॉकेट अमेरिका के द्वारा निर्मित किया गया था,लेकिन इस प्रक्षेपण से प्राप्त अनुभव से भारत ने स्वदेशी साउंडिंग रॉकेट रोहिणी -75 को निर्मित करके,रॉकेट निर्माण का कार्य प्रारंभ किया।
साउंडिंग रॉकेट ठोस ईंधन आधारित एक या द्वि-चरणीय अनुसंधान रॉकेट होते हैं,जो मुख्यतः ऊपरी वायुमंडल के अध्ययन हेतु अंतरिक्ष में भेजे जाते हैं, साथ ही यह छोटे उपकरणों को तो अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम होते हैं ,परंतु बड़े उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित करने की क्षमता इनमे नहीं पाई जाती है।इसलिए प्रारम्भिक दिनो में भारत अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने हेतु पूर्णतया अन्य देशों पर निर्भर था,लेकिन साउंडिंग रॉकेट व ठोस ईंधन आधारित इंजन के विकास ने भारत में बड़े रॉकेट निर्माण हेतु एक आधार प्रदान किया।परिणामस्वरूप 18 जुलाई 1980 को भारत उपग्रह प्रमोचन यान-3 (SLV-3) का सफल परीक्षण करते हुए उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हुआ जिनके पास उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की क्षमता थी।
SLV-3 नामक प्रथम रॉकेट को निर्मित करने के कुछ ही समय बाद 1980 के दशक में ही SLV को सँवर्धित करके ऑग्मेंटेड सैटलाइट लॉन्चिंग व्हिकल(ASLV) नामक रॉकेट का निर्माण किया गया।इस प्रकार SLV व ASLV भारत के शुरुआती प्रमोचन यान थे।लेकिन वर्तमान में ये दोनों ही रॉकेट सेवामुक्त हो चुके है।
सैटेलाइट लॉंचिंग व्हिकल-3 (SLV-3) :-SLV-3 भारत का प्रथम प्रायोगिक उपग्रह प्रक्षेपण यान था।यह ठोस प्रणोदक युक्त चार चरणों वाला यान है ,जो 40 KG वजन के उपग्रहों को पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थापित करने में सक्षम था।इसकी लंबाई लगभग 22 मीटर तथा वज़न 17 टन था।
1980 से 1983 ईसवी के मध्य इस रॉकेट की सहायता से रोहिणी शृंखला के उपग्रह प्रक्षेपित किए गए।वर्तमान में इसके इंजन का प्रयोग अग्नि मिसाइल में किया जाता है।
सँवर्धित उपग्रह प्रमोचन यान (ASLV) :- ऑग्मेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल का निर्माण SLV को सँवर्धित करके किया गया , ताकि रॉकेट की क्षमता बढ़ायी जा सके।यह 5 चरणों से युक्त है जिसमें सभी चरणों में ठोस ईंधन का प्रयोग किया जाता है ।यह 150 किलो भार के उपग्रह को पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थापित करने में सक्षम था।सन 1987 से 1994 के मध्य SROSS शृंखला के उपग्रहों का प्रक्षेपण ASLV से ही किया गया। 1994 के बाद इसरो में ASLV प्रोजेक्ट को रोककर अपना ध्यान PSLV पर केंद्रित किया।
हालाँकि SLV व ASLV ज़्यादा सफल तो सिद्ध नहीं हुए ,लेकिन ये भारत की रॉकेट प्रौद्योगिकी के आधार अवश्य बनें,क्योंकि इन्हीं के अनुभव के आधार पर भारत ने अपने आगामी रॉकेट PSLV,GSLV,GSLV MK-2 तथा LVM-3 जैसे शक्तिशाली रॉकेट निर्मित करके दुनिया के शीर्ष देशों की सूची में शामिल हुआ।
लेखक-माँगी लाल विश्नोई