अंतरिक्ष प्रोधौगिकी की मूलभूत संकल्पना

 

अंतरिक्ष :- सामान्यतया पृथ्वी तल से लगभग सौ किमी की ऊँचाई पर वायुमंडल के ऊपर विद्यमान निर्वात व अनंत क्षेत्र अंतरिक्ष (space) कहलाता है।अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों में पृथ्वी के वायुमंडल तथा अंतरिक्ष के मध्य सीमा का निर्धारण एक काल्पनिक “कर्मन लाइन” के आधार पर किया गया है ,जिसकी ऊँचाई निश्चित नहीं है ।इसलिए अलग-अलग देश इस लाइन को अलग अलग ऊँचाई पर स्वीकार करते हैं।इस लाइन के ऊपर अंतरिक्ष में सभी देशों का एक समान अधिकार होता है ।यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि ,कर्मन लाइन के ऊपर वायुमंडल अचानक समाप्त नहीं होता है ,बल्कि ऊँचाई के साथ उत्तरोत्तर पतला होता जाता है।


अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी:- अंतरिक्ष क्षेत्र में होने वाले सभी प्रकार के अनुसंधान व विकास और इसके परिणामस्वरूप निर्मित किये जाने वाले वे सभी उपकरण जो ,मानव जीवन को अधिक सुविधाजनक बनाते हैं ,अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अंतर्गत आता है।

मनुष्य की दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ,विकसित किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के उपग्रहों - जिसमें संचार ,नौवहन प्रणाली ,मौसम संबंधी एवं सुदूर संवेदी उपग्रह सम्मिलित है,के साथ-साथ प्रक्षेपण यान,स्पेसक्राफ्ट, अंतरिक्ष स्टेशन तथा अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए आवश्यक उपकरणों व संरचनाओं का विकास अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में किया जाता है।

इस प्रकार अंतरिक्ष तकनीक का विभिन्न क्षेत्रों में विशेषकर- सागर विज्ञान, भू-विज्ञान,पर्यावरण विज्ञान,कृषि विज्ञान इत्यादि क्षेत्रों में व्यापक महत्व को देखते हुए, वर्ष 1962 में डॉ. विक्रम साराभाई के नेतृत्व में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई।


भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के उद्देश्य:-

भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम के दो प्रमुख उद्देश्य हैं।

1) बाहरी अंतरिक्ष का उपयोग शांतिपूर्वक कार्यों के लिए करना, ताकि मानव जीवन को बेहतर बनाया जा सके।

2) भारत में अंतरिक्ष तकनीक का विकास तथा इस तकनीक में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।

भारत में विकसित अंतरिक्ष तकनीक दोहरी उपयोगिता वाली तकनीक है ,जिसे अंतरिक्ष के साथ-साथ,सुरक्षा के क्षेत्र में भी उपयोग में लाया जाता है ।जैसे-अग्नि मिसाइल के प्रक्षेपण हेतु अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान आधारित ठोस ईंधन युक्त SLV रॉकेट का प्रयोग किया जाता है।


अंतरिक्ष अनुसंधान के तरीक़े:-

सामान्यतया अंतरिक्ष क्षेत्र में अनुसंधान तीन तरीक़ों से किया जा सकता है ।

1) पृथ्वी पर रहते हुए,किसी उपकरण अथवा  वैधसाला को स्थापित करके अंतरिक्ष क्षेत्र में अनुसंधान करना।

2) किसी उपकरण अथवा मानव को अंतरिक्ष में भेजकर ,अंतरिक्ष के बारे में जानकारी जुटाना।अथवा किसी आकाशीय पिंड के पास से गुज़रते हुए “फ़्लाई बाई मिशन” द्वारा उसके बारे में सूचनाएँ इकट्ठी करना।

3) किसी आकाशीय पिंड पर लैंडर अथवा मानव मिशन उतारकर,इन-सीटू एक्सपेरिमेंट द्वारा अनुसंधान कार्य करना।

अंतरिक्ष अनुसंधान के उपर्युक्त तरीक़ों में से  पृथ्वी पर रहते हुए ,अंतरिक्ष का अनुसंधान करना अधिक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि पृथ्वी के चारों ओर स्थित वायुमंडल (जो कि पृथ्वी के लिए एक प्राकृतिक रक्षा कवच है) के द्वारा विभिन्न प्रकार की सोलर व कॉस्मिक रेडीएशन को धरातल पर पहुँचने से पहले ही रोक दिया जाता है । ऐसी स्थिति में पृथ्वी पर विद्यमान अनुसंधानकर्ताओं के लिए वास्तविक परिणाम प्राप्त करना असंभव है।इसलिए अंतरिक्ष क्षेत्र में अनुसंधान के उचित परिणाम प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि, विभिन्न उपकरणों या उपग्रहों को पृथ्वी के वायुमंडल व चुंबकीय क्षेत्र से ऊपर स्थापित किया जाए।


वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत:-

सर्वप्रथम अक्टूबर 1957  में सोवियत संघ के द्वारा “Sputnik” नामक उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा गया,जो कि मानव निर्मित प्रथम उपग्रह है ,जिसे अंतरिक्ष में भेजा गया हो। तत्पश्चात उसके ठीक अगले ही माह में सोवियत ने स्पूतनिक-2 स्पेसक्राफ्ट के द्वारा लाईका नामक कुत्ते को अंतरिक्ष में भेजा।

लेकिन 12 अप्रैल 1961 का दिन अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक दिन रहा ,जब सोवियत संघ के द्वारा पहली बार किसी मानव को अंतरिक्ष में भेजा गया।इसके अंतर्गत एक रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को ,वोस्टोक-1 स्पेसक्राफ़्ट द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया। इस प्रकार व्यापक स्तर पर इस तकनीक की शुरुआत सोवियत संघ रूस के द्वारा की गई।

लेकिन शीत युद्ध के उस दौर में जब वैचारिक संघर्ष अपने चरम पर था,USSR द्वारा हासिल की गई यह उपलब्धियां अमेरिका के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थी।ऐसे समय में 1961 में USA के राष्ट्रपति जॉन कैनेडी के द्वारा घोषणा की गई कि,अमेरिका इसी दशक के अंत तक चंद्रमा पर पहली बार मानव उतारेगा।

तत्पश्चात इसी घोषणा के अनुसरण में 1961 में नासा के द्वारा अपोलो कार्यक्रम शुरू किया गया। अंततः 20 जुलाई 1969 तो वह ऐतिहासिक क्षण आया ,जब अपोलो 11 मिशन के द्वारा अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग के द्वारा पहली बार चंद्रमा की सतह पर मानवता की ओर से क़दम रखा गया।

USA के लिये ये पल अद्भूत थे,क्योकिं इसी मिशन के साथ ही अमेरिका ने अंतरिक्ष प्रोधौगिकी में सोवियत को पछाड़ते हुए एक छत्र राज किया है ।जो अभी भी जारी है।

लेखक-मांगी लाल विश्नोई

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