मंगल पर मानव आवास,रोमांचक पर चुनौतीपूर्ण

 


पृथ्वी पर इंसानी सभ्यता के लिए सम्भावित खतरों को देखते हुए,विश्व भर की तमाम स्पेस एजेन्सियाँ मंगल ग्रह पर मानव को बसाने के लिए प्रयासरत है,जिसमें अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी "स्पेसएक्स "तथा " नेशनल एयरोनोटिक्स एंड स्पेस ऐडमिनिस्ट्रेशन (NASA) अग्रणी हैं।जो कि इस दशक के अंत तक मानव को मंगल ग्रह पर भेजना चाहते है ।इस मिशन के लिए जहां एक ओर स्पेसएक्स अपने महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट "स्टारशिप" पर काम कर रहा है वहीं नासा भी मंगल जैसे कृत्रिम वातावरण में एस्ट्रोनोटस को ट्रेनिंग देने के साथ-साथ, स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) जैसे शक्तिशाली रॉकेट का निर्माण कर रहा है,जो मानव को मंगल तक ले जाए।

लेकिन मंगल ग्रह पर इंसानी बसावट रोमांचक होने के साथ-साथ हमारे अनुमान से कई गुना ज्यादा चुनौतीपूर्ण भी है।ऐसी स्थिति में पृथ्वी से इतनी दूर होने वाली इन बेहिसाब गड़बड़ियों से बचाव की उम्मीद करना भी बेमानी होगा ।

ये चुनौतियां निम्न प्रकार की हो सकती हैं

1)प्रक्षेपण हेतु उचित समय का चयन करना आवश्यक ।

पृथ्वी व मंगल दोनो ही ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करतें हैं । ऐसे में इन ग्रहों के बीच की दूरी भी बदलती रहती है ।मंगल,पृथ्वी से औसतन 22.5 करोड़ किलोमीटर दूर है,परन्तु प्रत्येक 26 माह बाद एक ऐसी स्थिति आती है,जब इन दोनों ग्रहों के बीच की दूरी न्यूनतम 5 करोड़ 60 लाख किलोमीटर होती है,जो कि मंगल मिशन हेतु सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है ।क्योकिं इससे यात्रा में लगने वाला समय व ऊर्जा दोनों की बचत सम्भव है ।लेकिन यह लॉन्च विण्डो बहुत कम समय की होती है,ऐसे में किसी भी आपातकालीन परिस्थिति में बेकअप मिशन भेजना भी सम्भव नहीं है।

2) पृथ्वी से मंगल की दूरी,चन्द्रमा की तुलना में बहुत अधिक है,और मानव को अभी तक अधिकतम चन्द्रमा तक की यात्रा का अनुभव है ।ऐसे में हम मंगल की यात्रा के दौरान आने वाली समस्याओं से अनभिज्ञ हैं,जो इन्सान के जीवन को संकट में डाल सकती हैं ।

3) पृथ्वी से मंगल तक पहुँचने में लगभग 6 से 10 माह तक का समय लग सकता है,ऐसे में इतने लम्बे समय तक इन्सान का जीरो ग्रेविटी में रहना चुनौतीपूर्ण है।इससे यात्रियों की हड्डियां व मांसपेशियां कमजोर पड़ सकती हैं,ओर ऐसा भी सम्भव है कि इन्सान मंगल की सतह पर चलने में भी सक्षम नहीं हो ।

4) मंगल की यात्रा का सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है,उसकी सतह पर सुरक्षित लैंड करना । यह किसी भी स्पेसक्राफ्ट के लिए कब्रिस्तान से कम नहीं है, क्योकिं मंगल का वायुमण्डल,पृथ्वी की तुलना में 100 गुना हल्का है,जिससे लैंडिंग के समय स्पेसक्राफ्ट की गति को कम करने के लिए आवश्यक अवरोध नहीं मिल पाता ।ऐसे में क्रेश लैंडिंग की सम्भावना बढ़ जाती है । मंगल की सतह पर दुर्दशा में विद्यमान सैकड़ो लैंडर व रोवर इसका प्रमाण है।

5) मंगल ग्रह पर रेडिएशन का खतरा भी एक बड़ी चुनौती है,क्योकिं मंगल के आन्तरिक भाग में पृथ्वी के समान तरल धात्विक कोर नहीं है।जिससे मंगल पर चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण नहीं हो पाता है और मैग्नेटिक फील्ड ही किसी ग्रह व उसके वायुमंडल को सूर्य से आने वाली विद्युत चुम्बकीय विकिरणो से बचाता हैं।परंतु मंगल ग्रह पर चुम्बकीय क्षेत्र अनुपस्थित होने के कारण, मंगल का वायुमण्डल सौर पवनो के द्वारा लगातार कमजोर किया जा रहा है ।

ऐसी स्थिति सौलर रेडिएशन व कॉस्मिक रेडिएशन के लिए मंगल की सतह तक पहुँचने हेतु अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करती है,जो कि मंगल यात्रियों के लिए कैंसर जैसी घातक बिमारियों का कारण बन सकती है ।

2019 के एक रिसर्च के अनुसार मंगल ग्रह पर जाने वाले प्रत्येक 3 में से 1 यात्री अपनी स्मरण क्षमता खो देगा।

6) क्षुद्रग्रहो व उल्कापात की समस्या ।

पृथ्वी का वायुमंडल बाहर अन्तरिक्ष से आने वाले क्षुद्रग्रहो व उल्काओ को वायुमंडल में ही जलाकर पृथ्वी की रक्षा करता हैं।लेकिन मंगल का वायुमंडल अत्यन्त कमजोर होने के कारण क्षुद्रग्रह,उल्कापिंड इत्यादि मंगल की सतह पर गिरते रहते हैं,जो किसी भी मंगल मिशन के लिए चुनौती बन सकते हैं ।

7) मंगल की सतह पर रेतीले तुफान उठते रहते हैं,जो वहां के गुरुत्वाकर्षण के कमजोर होने के कारण लम्बे समय तक मंगल के वायुमंडल में बने रहते हैं ।ये रेतीले बादल सूर्य की रोशनी को पूरी तरह से रोक देते हैं,परिणामस्वरूप इस लाल ग्रह का तापमान अत्यधिक कम हो जाता है ।

2018 में ऐसे ही एक रेतीले तुफान में फँसने के कारण नासा के ऑपरचुनिटी रोवर के सौलर पैनल अवरुद्ध हो गए,जिससे रोवर ने काम करना बंद कर दिया ।

8) मंगल पर इन्सान के पीने योग्य व फसल उगाने के लिए तरल जल का अभाव है ।हालांकि नासा के मार्स इनसाइट लेंडर के ऑन बोर्ड कैमरा ने मार्स के वायुमंडल में अल्प मात्रा में जलवाष्प युक्त हल्के,पतले बादलों की खोज की ।ये बादल इतने विरल थे कि,वर्षा के लिए पर्याप्त नहीं थे।लेकिन यह खोज सतह पर जल की उपस्थिति का प्रमाण प्रस्तुत है ।

विभिन्न शोधो द्वारा पता चला है कि,मंगल के दोनों ध्रुवों पर तथा मध्यवर्ती भागों में मिट्टी की ऊपरी परत के नीचे बड़ी मात्रा में जल,ठोस रूप में विधमान है ।

9)फसल उगाने की चुनौती ।

मंगल की मिट्टी में विषेली परक्लोरेट की मात्रा पाई जाती है,जिस पर फसल उगाने पर वह परक्लोरेट का अवशोषण कर लेगी,जो मानव उपयोग योग्य नहीं है ।ऐसी स्थिति में फसल को मिट्टी के बजाय पानी में ही हायड्रोपोनिक तकनीक से उगाया जा सकता है ।

परंतु इस जहरीली मिट्टी के सीधे सम्पर्क में भी आना एस्ट्रोनोटस के लिए हानिकारक होगा ।


10) श्वसन हेतु ऑक्सीजन का अभाव ।

मंगल के वायुमंडल में मुख्यतः 95 प्रतिशत तक कार्बन डाई ऑक्साइड गैस पाई जाती है,परंतु ऑक्सीजन का अभाव है,जो कि मंगल पर मानव के लिए सबसे पहली जरूरत है ।

नासा ने 2021 में पर्सिवरेन्स रोवर को मंगल की सतह पर उतारा,इसी रोवर पर लगे एक उपकरण "मार्स ऑक्सीजन इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन एक्सपेरिमेंट"(MOXIE) के द्वारा मंगल की सतह पर विद्युत का उपयोग करके वायुमंडलीय कार्बन डाई ऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदला ।मंगल पर जीवन के लिए यह बहुत बड़ी खोज है,क्योकि यह खोज यात्रियों को श्वसन के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध करवाने के साथ-साथ स्पेसक्राफ्ट के लिए ईंधन की भी आपूर्ति कर सकेगी,ताकि पृथ्वी पर वापसी की राह आसान हो ।

11) मंगल की सतह पर शेल्टर बनाने की चुनौती ।

मंगल ग्रह पर पृथ्वी के समान मकान बनाना आसान नहीं है ।लेकिन इस ग्रह की अन्य चुनौतियां जैसे रेडिएशन,अत्यधिक ठंड ओर उल्कापात जैसे खतरों से मंगल यात्रियों को बचाने के लिए शेल्टर की आवश्यकता पड़ेगी ।ऐसे किसी भी शेल्टर को रोबोट या 3D-प्रिंटिंग तकनीक द्वारा मानव के पहुँचने से पहले निर्मित करना पड़ेगा,जो कि चुनौतीपूर्ण कार्य है । हालांकि मंगल की सतह पर ज्वालामुखी निर्मित गुफाओं को भी शेल्टर के रूप में उपयोग में लिया जा सकता है ।

इन सभी चुनौतियों के बावजूद मानव को पृथ्वी के अलावा एक सुरक्षित ठीकाना ढूढना ही होगा,ताकी आपातकालीन परिस्थितियों में मानव प्रजाति को बचाया जा सके।ऐसे में सम्पूर्ण वैज्ञानिक जगत इन सभी समस्याओं का समाधान खोजने में जुटा है ।

आशा है कि,एक-दो दशक के भीतर- भीतर ही हमे हमारा दूसरा घर मंगल में मिल जाए ।

लेखक-मांगी लाल विश्नोई 

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